Thursday, May 5, 2016

वास्तु अनुकूल हो अपार्टमेंट तो स्वस्थ रहेंगे आप

किसी अपार्टमेंट में फ्लैट खरीदते हुए भी वास्तु नियमों को ध्यान में रखना जरूरी है। अगर फ्लैट में कुछ वास्तु नियमों का ध्यान रखा जाए तो जीवन में खुशहाली आ सकती है।

भले ही पहले-पहल अपार्टमेंट आम आदमी की आवश्यकता थे, लेकिन अब आलीशान और महंगे अपार्टमेंट स्टेटस सिबंल और सुरक्षा का पर्याय भी बन गए हैं। बहुत से लोगों का ऐसा मानना होता है कि अपार्टमेंट के मामले में वास्तु नियम काम नहीं करते, यह धारणा सर्वथा गलत है।

अपार्टमेंट के लिए भी वास्तु नियम उसी तरह कारगर हैं, जिस तरह से किसी अन्य रिहायशी मकान, कोठी या बंगले के लिए। जहां मनुष्य निवास करता है और चाहता है कि जीवन में उसे सुख-सफलता, स्वास्थ्य और समृद्धि मिले तो वहां वास्तु नियमों का अनुपालन भी आवश्यक होता है।

हां, यह अवश्य है कि अपार्टमेंट के अपने कुछ वास्तु नियम होते हैं और जिस विशाल इमारत का हिस्सा अपार्टमेंट है, उस इमारत के अपने। अगर मुख्य इमारत में कोई वास्तु दोष हो भी तो हम अपने अपार्टमेंट में वास्तु नियमों का अनुपालन कर उस दोष के दुष्प्रभाव से दूर रह सकते हैं।

यूं तो एक सुखी-संपन्न् आवास के लिए आवश्यक है कि निर्माण के समय भी वास्तु नियमों का ध्यान रखा जाए, लेकिन अपार्टमेंट चूंकि बिल्डर बनाता है और महानगरों में तो यह काम विशाल स्तर पर होता है, ऐसे में लाजिमी है कि बिल्डर से निर्माण में कोई न कोई त्रुटि रह ही जाती है।

ऐसे में आवश्यक है कि हम आवास से पहले ही अपने अपार्टमेंट का वास्तु अनुरूप कर लें, अगर ऐसा नहीं किया है तो आवश्यक है कि आप निम्नलिखित नियमों पर ध्यान दें और अगर इनमें से कोई नियम आपके अपार्टमेंट से अछूता है तो उसका वास्तु निदान अवश्य करें, जिससे आपका आवास सही मायने में आपके लिए खुशियों व सुख का आशियाना साबित हो सके।

गौरतलब है कि निम्नलिखित वास्तु उपाय न सिर्फ अपार्टमेंट में निवास करने वालों के लिए बल्कि बिल्डर्स के लिए भी उपयोगी साबित हो सकते हैं। वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप किया गया निर्माण न सिर्फ बिल्डर को यथोचित लाभ दिलाएगा, उसे निर्माण कार्य के दौरान आने वाली विघ्न-बाधाओं से भी बचाए रखेगा।

    अपार्टमेंट के चारों ओर पर्याप्त खुला स्थान होना चाहिए। दक्षिण, पश्चिम की तुलना में उत्तर, पूर्व में अधिक खुला स्थान छोड़ें।

    1:1 और 1: 2 के आकार के आयाताकार भूखंड अपार्टमेंट के लिए सर्वोचित रहते हैं। ऐसे भूखंड पर किया गया निर्माण कार्य न सिर्फ भू-स्वामी को लाभ देता है, उक्त इमारत में निवास करने वालों को भी सुख-शांति, समृद्धि व सफलता प्रदान करता है।

    उत्तर के खुले भाग को लॉन तथा पूर्व के भाग को पार्किंग स्थल बनाया जा सकता है।

    फर्श का ढलान दक्षिण से उत्तर की ओर तथा पश्चिम से पूर्व की ओर रखें।

    जहां तक संभव हो सके अपार्टमेंट का प्रवेश द्वार दक्षिण-पश्चिम भाग में न बनाएं। इस बात का भी ख्याल रखें कि मुख्य द्वार इमारत के भीतर निर्मित किए जाने वाले फ्लैट्स के प्रवेश द्वारों से बड़ा हो। बिल्डिंग में सामान्यत: दो मुख्य द्वारों का निर्माण करवाना चाहिए। एक प्रवेश के लिए जबकि दूसरा बाहर जाने के लिए।

    इमारत के प्रत्येक तल पर प्राकृतिक रोशनी व हवा का उचित प्रबंध होना चाहिए। फ्लैट्स का निर्माण भी इस प्रकार किया जाना चाहिए कि वे प्राकृतिक रोशनी से वंचित न हों।

    सीढ़ियों एवं लिफ्ट का निर्माण मुख्य इमारत में साथ-साथ किया जाना चाहिए। इन्हें दक्षिण/पश्चिम दिशा में बनाया जा सकता है। उत्तर/पूर्व में सीढ़ियां या लिफ्ट बनाना अशुभ फल देता है।

    छत के ऊपर पानी की टंकी पश्चिम दिशा में बना सकते हैं। वहीं भूमिगत जलाशय को उत्तर या उत्तर-पूर्व में बनाएं। बोरवेल को उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व में बना सकते हैं।

    इमारत के दक्षिण-पश्चिमी भाग को अपेक्षाकृत भारी बनाएं।

    प्रत्येक फ्लैट में रसोईघर को दक्षिण-पूर्व में स्थान दें। जबकि टॉयलेट व बाथरूम दक्षिण/दक्षिण-पश्चिम में बनाएं।

    फ्लैट की लंबाई-चौड़ाई एक समान हो अर्थात जहां तक संभव हो सके फ्लैट वर्गाकार होना चाहिए।

    जनरेटर, ट्रांसफॉर्मर व स्विच बोर्ड आदि को अपार्टमेंट के बाहर दक्षिण-पूर्वी हिस्से को बंद किए बिना स्थापित करना चाहिए।

    इमारत के मुख्य द्वार के ठीक सामने पेड़-पौधे नहीं लगाने चाहिए। इमारत के भीतर बगीचे में अगर पेड़ लगाएं भी तो इस बात का ख्याल रखें कि लंबे और घने वृक्ष इमारत के निकट न लगाएं। उन्हें इस प्रकार लगाया जाए कि उनकी छाया शाम 4 बजे तक इमारत पर न पड़े।

    बगीचा और प्ले ग्राउंड इमारत के उत्तर/पूर्व भाग में बना सकते हैं। बॉलकनी भी उत्तर/पूर्व में बनाएं।

    इस बात का खयाल रखें कि सिक्योरिटी रूम की दीवार इमारत की मुख्य चारदीवारी को न छूती हो।

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