गृह निर्माणकी सामग्री
1) ईंट, लोहा, पत्थर, मिट्टी और लकड़ी - ये नये मकानमें नये ही लगाने चाहिये ।
2) नये मकानमें पुरानी लकड़ी नहीं लगानी चाहिये । एक मकानमें उपयोग की गयी लकड़ी दूसरे मकानमें लगानेसे सम्पत्तिका नाश एवं अशान्तिकी प्राप्ति होती है । ऐसे मकानमें गृहस्वामी रह नहीं पाता, यदि रहता है तो उसकी मृत्यु होती है ।
3) मकानमें एक, दो या तीन जातिकी लकड़ी लगानी चाहिये । एक जातिकी लकड़ी उत्तम, दो जातिकी मध्यम और तीन जातिकी अधम होती है ।
4) एक, दो या तीन प्रकारके काष्ठोंसे बनाया घर शुभ होता है । इससे अधिक प्रकारके काष्ठोंसे बनाया घर अनेक भय देनेवाला होता है ।
5) नया द्वार पुराने द्वारसे संयुक्त होनेपर दूसरे स्वामीकी इच्छा करता है । नया द्रव्य पुराने द्रव्यसे संयुक्त होनेपर कलिकारक (कलह करानेवाला) होता है । मिश्रजातिके द्रव्यसे निर्मित द्वार या घर अशुभ होता है ।
एक वास्तुसे निकाला गया द्रव्य दूसरे वास्तुमें प्रयुक्त नहीं करना चाहिये । ऐसा करनेपर देवमन्दिरमें पूजा नहीं होती और गृहमें गृहस्वामी नहीं बस पाता ।
देव-दग्ध (अग्निसे जले) द्रव्यसे जो भवन बनाया जाता है, उसमें गृहस्वामी निवास नहीं कर पाता और यदि निवास करता है तो नाशको प्राप्त होता है ।
6) त्याज्य वृक्ष - दूधवाले, कॉंटेवाले, पुष्पोंवाले, रस बहानेवाले, पक्षियोंके घोंसलेवाले, उल्लुओंके वास, मांसाहारी पक्षियोंसे दूषित, मधुमक्खियोंके छत्तेसे युक्त, सर्पके वास, चींटियोंसे आच्छादित, मकड़ीके जालोंसे ढके, भूत-प्रेतोंके वास, दीमक लगे हुए, गॉंठोंसे युक्त, कोटरवाले, गड्ढेसे ढके हुए, रोगोंसे युक्त, जिनका आधा भाग सूख गया हो या टूट गया हो, एक-दो शाखावाले, बिजली और आँधीसे गिरे हुए, जले हुए, हाथी आदि जानवरोंसे रौंदे हुए, समाधि-स्थलमें लगे हुए, देवमन्दिरमें लगे हुए, आश्रममें लगे हुए, नदियोंके संगमपर स्थित श्मशानभूमिमें लगे हुए, जलाशय (तालाब आदि) - पर लगे हुए, खेतमें लगे हुए, चौराहे, तिराहे या मार्गपर लगे हुए - इन वृक्षोंकी लकड़ी गृहनिर्माणके काममें नहीं लेनी चाहिये ।
7) पीपल, कदम्ब, नीम, बहेड़ा, आम, पाकर, गूलर, सेहुड़, वट, रीठा, लिसोड़ा, कैथ, इमली, सहिजन, ताल, शिरीष, कोविदार, बबूल और सेमल - इन
वृक्षोंकी लकड़ी अशुभ फल देनेवाली है ।
8) ग्राह्य वृक्ष - अशोक, महुआ, साखू, असना, चन्दन, देवदारू, शीशम, श्रीपर्णी, तिन्दुकी, कटहल, खदिर, अर्जुन, शाल और शमी - इन वृक्षोंकी लकड़ी शुभ फल देनेवाली है ।
9) धनदायक शीशम, श्रीपर्णी तथा तिन्दुकीके काष्ठको अकेले ही लगायें । अन्य किसी काष्ठके साथ सम्मिलित करनेपर ये मंगलकारी नहीं होते । इसी तरह धव, कटहल, चीड़, अर्जुन, पद्म वृक्ष भी अन्य काष्ठोंके साथ सम्मिलित होनेपर गृहकार्यके लिये शुभदायक नहीं होते ।
10) शहतीर, चौखट, दरवाजे - खिड़कियॉं, खूँटी, फर्नीचर आदिके निर्माणमें निषिद्ध वृक्षोंकी लकड़ी काममें नहीं लेनी चाहिये ।
11) शय्या के निर्माणमें श्रीपर्णी धनदायक, आसन रोगनाशक, शीशम वृद्धिकारक, सागवान कल्याणकारक, पद्मक आयुप्रद, चन्दन शत्रुनाशक एवं सुखदायक और शिरीष श्रेष्ठ है ।
12) काष्ठको कृष्णपक्षमें काटना चाहिये । शुक्लपक्षमें नही काटना चाहिये ।
13) जिस वृक्षको काटना हो, उसके निमित्त रातमें पूजा और बलि देकर प्रात: ईशानकोणसे प्रदक्षिणा-क्रमसे उसको काटे । यदि वृक्ष कटकर पूर्व, उत्तर या ईशानमें गिरे तो शुभ है, अन्य दिशामें गिरे तो अशुभ है ।
14) वृक्ष कटनेपर यदि पूर्व दिशामें गिरे तो धन-धान्यकी वृद्धि होती है । आग्नेयमें गिरे तो अग्निभय, दक्षिणमें गिरे तो मृत्यु, नैर्ऋत्यमें गिरे तो कलह, पश्चिममें गिरे तो पशुवृद्धि, वायव्यमें गिरे तो चोर-भय, उत्तरमें गिरे तो धनकी प्राप्ति और ईशानमें गिरे तो अतिश्रेष्ठ फल प्राप्त होता है ।
15) पत्थरका प्रयोग - वर्तमानमें घरोंमें पत्थरका प्रयोग अधिक किया जाने लगा है, परंतु वास्तुशास्त्रमें इसका प्रयोग निषिद्ध है ।
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1) ईंट, लोहा, पत्थर, मिट्टी और लकड़ी - ये नये मकानमें नये ही लगाने चाहिये ।
2) नये मकानमें पुरानी लकड़ी नहीं लगानी चाहिये । एक मकानमें उपयोग की गयी लकड़ी दूसरे मकानमें लगानेसे सम्पत्तिका नाश एवं अशान्तिकी प्राप्ति होती है । ऐसे मकानमें गृहस्वामी रह नहीं पाता, यदि रहता है तो उसकी मृत्यु होती है ।
3) मकानमें एक, दो या तीन जातिकी लकड़ी लगानी चाहिये । एक जातिकी लकड़ी उत्तम, दो जातिकी मध्यम और तीन जातिकी अधम होती है ।
4) एक, दो या तीन प्रकारके काष्ठोंसे बनाया घर शुभ होता है । इससे अधिक प्रकारके काष्ठोंसे बनाया घर अनेक भय देनेवाला होता है ।
5) नया द्वार पुराने द्वारसे संयुक्त होनेपर दूसरे स्वामीकी इच्छा करता है । नया द्रव्य पुराने द्रव्यसे संयुक्त होनेपर कलिकारक (कलह करानेवाला) होता है । मिश्रजातिके द्रव्यसे निर्मित द्वार या घर अशुभ होता है ।
एक वास्तुसे निकाला गया द्रव्य दूसरे वास्तुमें प्रयुक्त नहीं करना चाहिये । ऐसा करनेपर देवमन्दिरमें पूजा नहीं होती और गृहमें गृहस्वामी नहीं बस पाता ।
देव-दग्ध (अग्निसे जले) द्रव्यसे जो भवन बनाया जाता है, उसमें गृहस्वामी निवास नहीं कर पाता और यदि निवास करता है तो नाशको प्राप्त होता है ।
6) त्याज्य वृक्ष - दूधवाले, कॉंटेवाले, पुष्पोंवाले, रस बहानेवाले, पक्षियोंके घोंसलेवाले, उल्लुओंके वास, मांसाहारी पक्षियोंसे दूषित, मधुमक्खियोंके छत्तेसे युक्त, सर्पके वास, चींटियोंसे आच्छादित, मकड़ीके जालोंसे ढके, भूत-प्रेतोंके वास, दीमक लगे हुए, गॉंठोंसे युक्त, कोटरवाले, गड्ढेसे ढके हुए, रोगोंसे युक्त, जिनका आधा भाग सूख गया हो या टूट गया हो, एक-दो शाखावाले, बिजली और आँधीसे गिरे हुए, जले हुए, हाथी आदि जानवरोंसे रौंदे हुए, समाधि-स्थलमें लगे हुए, देवमन्दिरमें लगे हुए, आश्रममें लगे हुए, नदियोंके संगमपर स्थित श्मशानभूमिमें लगे हुए, जलाशय (तालाब आदि) - पर लगे हुए, खेतमें लगे हुए, चौराहे, तिराहे या मार्गपर लगे हुए - इन वृक्षोंकी लकड़ी गृहनिर्माणके काममें नहीं लेनी चाहिये ।
7) पीपल, कदम्ब, नीम, बहेड़ा, आम, पाकर, गूलर, सेहुड़, वट, रीठा, लिसोड़ा, कैथ, इमली, सहिजन, ताल, शिरीष, कोविदार, बबूल और सेमल - इन
वृक्षोंकी लकड़ी अशुभ फल देनेवाली है ।
8) ग्राह्य वृक्ष - अशोक, महुआ, साखू, असना, चन्दन, देवदारू, शीशम, श्रीपर्णी, तिन्दुकी, कटहल, खदिर, अर्जुन, शाल और शमी - इन वृक्षोंकी लकड़ी शुभ फल देनेवाली है ।
9) धनदायक शीशम, श्रीपर्णी तथा तिन्दुकीके काष्ठको अकेले ही लगायें । अन्य किसी काष्ठके साथ सम्मिलित करनेपर ये मंगलकारी नहीं होते । इसी तरह धव, कटहल, चीड़, अर्जुन, पद्म वृक्ष भी अन्य काष्ठोंके साथ सम्मिलित होनेपर गृहकार्यके लिये शुभदायक नहीं होते ।
10) शहतीर, चौखट, दरवाजे - खिड़कियॉं, खूँटी, फर्नीचर आदिके निर्माणमें निषिद्ध वृक्षोंकी लकड़ी काममें नहीं लेनी चाहिये ।
11) शय्या के निर्माणमें श्रीपर्णी धनदायक, आसन रोगनाशक, शीशम वृद्धिकारक, सागवान कल्याणकारक, पद्मक आयुप्रद, चन्दन शत्रुनाशक एवं सुखदायक और शिरीष श्रेष्ठ है ।
12) काष्ठको कृष्णपक्षमें काटना चाहिये । शुक्लपक्षमें नही काटना चाहिये ।
13) जिस वृक्षको काटना हो, उसके निमित्त रातमें पूजा और बलि देकर प्रात: ईशानकोणसे प्रदक्षिणा-क्रमसे उसको काटे । यदि वृक्ष कटकर पूर्व, उत्तर या ईशानमें गिरे तो शुभ है, अन्य दिशामें गिरे तो अशुभ है ।
14) वृक्ष कटनेपर यदि पूर्व दिशामें गिरे तो धन-धान्यकी वृद्धि होती है । आग्नेयमें गिरे तो अग्निभय, दक्षिणमें गिरे तो मृत्यु, नैर्ऋत्यमें गिरे तो कलह, पश्चिममें गिरे तो पशुवृद्धि, वायव्यमें गिरे तो चोर-भय, उत्तरमें गिरे तो धनकी प्राप्ति और ईशानमें गिरे तो अतिश्रेष्ठ फल प्राप्त होता है ।
15) पत्थरका प्रयोग - वर्तमानमें घरोंमें पत्थरका प्रयोग अधिक किया जाने लगा है, परंतु वास्तुशास्त्रमें इसका प्रयोग निषिद्ध है ।
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